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रीति - रिवाज एवं नियम

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धर्म ग्रंथों तथा परिचलन में हिंदू धर्म में कई कठिन नियम बताये गये है जिनका पालन करना धर्मानुसार माना गया है। कहा जाता है कि सभी रीति रिवाज वैज्ञानिक आधार पर बनाये गये हैं। उनमे से कुछ की चर्चा करते हैं और उनके वैज्ञानिक आधार की पड़ताल भी देखते है


व्रत रखना

शरीर तथा स्वास्थ्य ठीक रहता है। एक शोध के अनुसार सप्ताह में एक दिन व्रत रखने से कैंसर, मधुमेह तथा हृदय सम्बन्धी बीमारियों का खतरा कम होता है।

पैर छूना / चरण स्पर्श करना

बड़े,बुजुर्गों का सम्मान और आदर करने के लिए उनके पैर छूते हैं। पैर छूना या चरण स्पर्श करना भारतीय संस्कार का एक हिस्सा है जो सदियों से चला आ रहा है। यही संस्कार बच्चों को भी सिखाये जाते हैं ताकि वे भी अपने बड़ों का आदर करें और सम्मान करें।

वैज्ञानिक तर्क 
प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क से लेकर पैरों तक लगातार ऊर्जा का संचार होता है। जिसे कॉस्मिक ऊर्जा कहते हैं। जब किसी के पैर छूते हैं तब उस व्यक्ति के पैरों से होती हुई ऊर्जा हमारे शरीर में तथा हमारे हाथों से होते हुए उसके शरीर में पहुंचती है। और जब वह व्यक्ति आशीर्वाद देते समय हमारे सिर पर हाथ रखता है तब वह ऊर्जा दोबारा उसके हाथों से होती हुई हमारे शरीर में आती है। इस तरह पैर छूने से दूसरे व्यक्ति की ऊर्जा मिलती है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है तथा मन को शांति मिलती है।

माथे पर तिलक लगाना

हिन्दू धर्म के अनुसार धार्मिक अवसरों, शादी-विवाह, त्यौहार या पूजा पाठ के समय चन्दन, कुमकुम या सिंदूर से माथे पर तिलक लगाया जाता है। हिन्दू परम्परा के अनुसार माथे पर तिलक लगाना बहुत ही शुभ माना गया है।
वैज्ञानिक तर्क :- मानव शरीर में दोनों आँखों के बीच में एक चक्र होता है। इसी चक्र पर तिलक लगाया जाता है। इस चक्र पर एक नस होती है जिससे पूरे चेहरे पर रक्त का संचार होता है। जब माथे पर तिलक लगाया जाता है तो उस चक्र पर उँगली या अंगूठे से दबाव बनता है जिससे वह नस ज्यादा सक्रिय हो जाती है और पूरे चेहरे की माँस पेशियों में बेहतर तरीके से रक्त संचार करती है। जिससे ऊर्जा का संचार होता है और एकाग्रता बढ़ती है तथा चेहरे पर रौनक आती है।

हाथ जोड़कर नमस्ते करना या हाथ जोड़ना

हिन्दू परम्परा तथा भारतीय संस्कृति के अनुसार किसी से मिलते समय या अभिवादन करते समय हाथ जोड़कर प्रणाम किया जाता है या पूजा पाठ के समय हाथ जोड़े जाते है। दरअसल हाथ जोड़ना सम्मान का प्रतीक है।

वैज्ञानिक तर्क 
हाथ जोड़ने पर हाथ की सभी अंगुलियों के सिरे एक दूसरे से मिलते हैं। जिससे उन पर दबाव पड़ता है। यह दबाव एक्यूप्रेशर का काम करता है। एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार इसका सीधा असर हमारी आँखों, कानों तथा दिमाग पर पड़ता है। जिससे सामने वाला व्यक्ति हमें लम्बे समय तक याद रहता है।vइसका एक दूसरा तर्क यह भी है कि अगर हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु हम तक नही पहुंच पाते हैं। हाथ जोड़कर अभिवादन करने से एक दूसरे के हाथों का सम्पर्क नहीं हो पाता है जिससे बीमारी फैलाने वाले वायरस तथा बैक्टीरिया हम तक नही पहुंच पाते हैं। और बीमारियों से बचे रहते हैं।

एक गोत्र में शादी नहीं करना

धार्मिक मान्यता के अनुसार समान गोत्र या कुल में शादी करना प्रतिबंधित है। मान्यता के अनुसार एक ही गोत्र का होने के कारण स्त्री और पुरुष  दोनों रिश्ते में भाई बहन कहलाते हैं क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं। इसलिए एक ही गोत्र में शादियाँ नहीं की जाती हैं। यह बात थोड़ी अजीब भी लगती हैं कि जिन स्त्री, पुरुष ने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं तथा अलग अलग जगहों पर तथा अलग अलग माहौल में पले बढ़े, फिर वे भाई, बहन कैसे बन गये? हिंदू धर्म में गोत्र का बहुत महत्व है तथा प्रत्येक पूजा पाठ में इसी से उच्चारित होते हैं।

वैज्ञानिक तर्क 
समान गोत्र का होने के कारण चाहे वे भाई - बहन हों या ना हों लेकिन उनके गुणसूत्र (क्रोमोजोम) समान होते हैं। इसलिए अगर एक गोत्र के स्त्री, पुरुषों की शादी होती है तो उनके बच्चे अनुवांशिक (जेनेटिक) बीमारियों के साथ पैदा हो सकते हैं। ऐसे बच्चों में अनुवांशिक दोष जैसे मानसिक कमजोरी, अपंगता आदि गंभीर रोग जन्मजात ही पाए जाते हैं। ऐसे बच्चों की विचारधारा, व्यवहार आदि में कोई नयापन नही होता है और उनमें रचनात्मकता का अभाव होता है। इसलिए अलग अलग गोत्र में शादी करने से स्त्री पुरुष के गुणसूत्र (क्रोमोजोम), जींस आपस में एक नहीं होते जिससे उनके बच्चों में अनुवांशिक बीमारियों का खतरा नही होता है।

दक्षिण दिशा या पूर्व दिशा में सिर करके सोना

धर्मशास्त्रों के अनुसार सोते समय सर दक्षिण या पूर्व दिशा में होना चाहिए तथा पैर उत्तर या पश्चिम दिशा में होने चाहिए। मान्यता के अनुसार ऐसा न करने पर बुरे सपने आते हैं और ये अशुभ होता है।

वैज्ञानिक तर्क
पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी (नार्थ पोल) तथा दक्षिण ध्रुव (साउथ पोल) में चुम्बकीय प्रवाह (मैग्नेटिक फ्लो) होता है। उत्तरी ध्रुव पर धनात्मक (+) प्रवाह तथा दक्षिणी ध्रुव पर ऋणात्मक (-) प्रवाह होता है। उसी तरह मानव शरीर में भी सिर में धनात्मक (+) प्रवाह तथा पैरों में ऋणात्मक (-) प्रवाह होता है। विज्ञान के अनुसार दो धनात्मक (+) ध्रुव या दो ऋणात्मक (-) ध्रुव एक दूसरे से दूर भागते हैं। इसलिए जब उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोते हैं तो उत्तर की धनात्मक तरंग तथा सर की धनात्मक तरंग एक दूसरे से दूर भागती हैं। जिससे हमारे दिमाग में हलचल होती है और बेचैनी बढ़ जाती है। जिससे अच्छे से नींद नही आती है और सुबह सोकर उठने के बाद भी शरीर में थकान रहती है। जिससे ब्लड प्रेशर अंसतुलित हो जाता है और मानसिक बीमारियाँ होने की संभावना बाढ़ जाती हैं।जब हम दक्षिण दिशा की ओर सर करके सोते हैं तो दक्षिण की ऋणात्मक (-) तरंग तथा सिर की धनात्मक (+) तरंग आपस में मिल जाती हैं। जिससे चुम्बकीय प्रवाह आसानी से हो जाता है। और दिमाग में कोई हलचल नही होती है और अच्छी नींद आती है। और सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करते हैं तथा मानसिक बीमारियों का खतरा नही होता है। पूर्व दिशा में सूर्योदय होता है। जिससे सूर्योदय होने पर पूर्व दिशा की ओर पैर होने से सूर्य देव का अपमान होता है।इसलिये हमेशा दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर ही सिर करके सोना चाहिए।

जमीन पर बैठकर भोजन करना

 प्राचीन समय में डाइनिंग टेबल नहीं थी इसलिए जमीन पर आसन बिछाकर उस पर बैठकर भोजन करते थे। अब जमीन पर बैठकर भोजन करने की परंपरा लगभग ख़त्म सी हो गयी है लेकिन इसका एक ठोस वैज्ञानिक कारण भी है।
वैज्ञानिक तर्क : पालथी लगाकर बैठना एक योग आसन है जिसे सुखासन कहते हैं। इस तरह बैठकर भोजन करने से एक तरह से योग होता है तथा पाचन क्रिया अच्छी रहती है,  मोटापा, अपच, कब्ज , एसिडिटी आदि पेट की बीमारियाँ नहीं होती हैं तथा मन शांत रहता है।

भोजन की शुरुआत में तीखा खाना तथा अंत में मीठा खाना

भारतीय परम्परा के अनुसार धार्मिक अवसरों या शुभ अवसरों पर शुरुआत में तीखा खाना खाया जाता है तथा बाद में मीठा खाया जाता है। ज्यादातर लोग अपनी दैनिक दिनचर्या में खाना खाने के बाद मीठा खाते हैं। एक कहावत भी है कि “खाने के बाद कुछ मीठा हो जाये”।

वैज्ञानिक तर्क
विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार शुरुआत में तीखा भोजन करने के बाद पेट में पाचन तत्व तथा अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। जिससे पाचन तंत्र तेज हो जाता है तथा खाने के बाद मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है जिससे पेट में जलन या एसिडिटी नहीं होती है।

सूर्य को जल चढ़ाना

सूर्य को जल चढ़ाने की परम्परा बहुत प्राचीन काल से है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव को जल चढाने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और मनुष्य पर सूर्य का प्रकोप नहीं होता है। राशि के दोष भी ख़त्म हो जाते हैं।
वैज्ञानिक तर्क -: विज्ञान के अनुसार सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें ज्यादा तेज नहीं होती है जो शरीर के लिए एक औषधि का काम करती हैं। उगते सूर्य को जल चढाने से तथा जल की धार में से सूर्य को देखने से सूर्य की किरणें जल में से छन कर हमारी आँखों तथा शरीर पर पड़ती हैं। जिससे आँखों की रौशनी तेज होती है तथा पीलिया, क्षय रोग, तथा दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। सूर्य की किरणों से विटामिन-डी भी प्राप्त होता है। इसके अलावा सुबह सुबह सूर्य को जल चढाने से शुद्ध ऑक्सीजन भी हमें मिलती है।

स्नान के बाद ही भोजन करना

शास्त्रों के अनुसार बिना स्नान किये भोजन करना वर्जित है। शास्त्रों के अनुसार स्नान करके पवित्र होकर ही भोजन करना चाहिए। बिना स्नान किये भोजन करने से देवी देवता अप्रसन्न हो जाते है।

वैज्ञानिक तर्क
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्नान करने से शरीर की गन्दगी निकल जाती है तथा शरीर में नई ताजगी तथा स्फूर्ति आती है। स्नान करने के बाद स्वभाविक रूप से भूख लगती है। उस समय भोजन करने से भोजन का रस शरीर के लिए पुष्टिवर्धक होता है। जबकि स्नान करने से पूर्व खाना खाने से पेट की जठराग्नि उसे पचाने में लग जाती है। खाना खाने के बाद नहाने से शरीर ठंडा हो जाता है जिससे पेट की पाचन क्रिया मन्द पड़ जाती है और पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती तथा पेट के रोग होने की संभावना बाढ़ जाती है।
 

धार्मिक कार्यो, शुभ अवसरों पर पूजा पाठ में हाथ पर कलावा बांधना

हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कार्य, शुभ अवसर या पूजा पाठ पर दाहिने या बायें हाथ में कलावा (मौली धागा) बाँधा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हाथ पर कलावा बांधना शुभ होता है और इससे देवी देवता प्रसन्न होते हैं।

वैज्ञानिक तर्क
विज्ञान के अनुसार हाथ की कलाई में ऐसी नसें होती हैं जो दिमाग तक जाती है। उस जगह कलावा बाँधने से उन नसों पर दबाव पड़ता है जिससे दिमाग तक रक्त संचार सुचारू रूप से होता है जिससे दिमाग शांत रहता है। कलावा वात , कफ तथा पित्त जैसे रोग दोषों का खतरा भी कम करता है।

कर्ण छेदन

कान छिदवाना बहुत पुरानी परंपरा है। पुराने समय में ऋषि मुनि, राजा महाराजा कानों में कुंडल पहनते थे। आज के समय में कान छिदवाना एक फैशन बन गया है। जिसे सिर्फ भारत के लोग ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग अपना रहे हैं। स्त्रियाँ श्रृंगार करने के लिए भी  कान छिदवाती हैं तथा कानों में कुंडल बालियाँ आदि पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के हिसाब से कान छिदवाना स्त्री व पुरुष दोनों के लिए लाभदायक है। कान में एक नस होती है जो दिमाग तक जाती है। कान छिदवाने से इस नस में रक्त संचार नियंत्रित रहता है। जिससे सोचने के शक्ति बढ़ती है तथा बोलने में होने वाली समस्या ख़त्म होती है और दिमाग शांत रहता है। पुरुषों के द्वारा कान छिदवाने से उनमे होने वाली हर्निया की बीमारी ख़त्म हो जाती है।

तुलसी के पौधे की पूजा करना

ज्यादातर घरों में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार तुलसी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि तथा खुशहाली आती है।

वैज्ञानिक तर्क 
विज्ञान के अनुसार तुलसी का पौधा वातावरण को शुद्ध करता है। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर का वातावरण शुद्ध होता है। तुलसी मच्छरों तथा कीटाणुओं को दूर भगाता है जिससे वायु शुद्ध होती है। इसके अलावा तुलसी में रोग प्रतिरोधी गुण होते हैं। इसकी पत्तियां खाने से शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

पीपल के पेड़ की पूजा

धार्मिक मान्यता के अनुसार रोजाना पीपल की पूजा करने से घर की सुख, समृद्धि बढती है तथा लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार पीपल पर साक्षात ब्रम्हा, विष्णु और शिव निवास करते हैं। इस पर लक्ष्मी तथा पितरो का वास भी बताया गया है। इसलिये पीपल का वृक्ष पूजनीय है। शनिवार को पीपल की पूजा करने से शनि के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।

वैज्ञानिक तर्क
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पीपल 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है जो प्राण वायु है और मानव जीवन के लिये बहुत जरूरी है। पीपल का वृक्ष गर्मी में शीतलता (ठण्डक) तथा सर्दी में उष्णता (गर्मी) प्रदान करता है। आयुर्वेद के अनुसार पीपल का हर भाग जैसे तना, पत्ते, छाल और फल सभी चिकित्सा के काम में आते हैं जिनसे कई गम्भीर रोगों का इलाज होता है। एक दूसरा कारण इस वृक्ष को काटे जाने से बचाने का भी है। लोग इस वृक्ष को काटे नहीं, इसलिये इसकी पूजा का महत्व है। क्योंकि जीने के लिए ऑक्सीजन जरूरी है और सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पीपल का वृक्ष ही देता है।

मंदिर क्यों जाते हैं?

आस्था के अतिरिक्त मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं तो शरीर स्वस्थ्य रहता है, मस्तिष्क शांत रहता है।

महिलाओं का चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएँ हाथों में चूड़ियां पहनती हैं। इसे शृंगार का एक रूप माना गया है तथा सौभाग्य की निशानी के रूप में भी देखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क
हाथों में चूड़ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है और माना गया है कि इस से ईश्वर प्रसन्न होते है और यज्ञ के बाद ही अनुष्ठान पूरा होता है।

वैज्ञानिक तर्क 
हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआँ उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े - मकौड़े दूर भागते हैं।
उपरोक्त लेख में हिन्दू धर्म की कुछ परम्परायें तथा उनके वैज्ञानिक तर्क तथा फायदे बताये गये हैं। दरअसल पुराने समय से चली आ रही ये परम्परायें हमारे ऋषि मुनियों के गहन अध्ययन का नतीजा हैं जिनसे लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ मिलता है। और अब वैज्ञानिक तथा आयुर्वेद ने भी अपने शोधों से यह प्रमाणित कर दिया है कि ऋषि मुनियों और हमारे पूर्वजों द्वारा चलाई गई ये परम्परायें मानव जीवन के लिए बहुत फायदेमंद हैं तथा जरूरी भी हैं।

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